पण्डो जनजाति की ज़मीन पर गैर-आदिवासी का अवैध कब्ज़ा: सूरजपुर में प्रशासनिक मिलीभगत का मामला उजागर कलेक्टर जनदर्शन में सौंपा गया ज्ञापन, जमीन वापसी और दोषियों पर कार्रवाई की मांग……

Rajesh Kumar Mishra
Rajesh Kumar Mishra
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NOW HINDUSTAN. Korba. सूरजपुर ज़िले में विशेष पिछड़ी जनजाति पण्डो समुदाय की ज़मीन पर गैर-आदिवासी परिवार द्वारा कब्ज़ा और अवैध नामांतरण का गंभीर मामला सामने आया है। जिला पंचायत सदस्य और युवा कांग्रेस के ज़िलाध्यक्ष नरेंद्र यादव ने मंगलवार को कलेक्टर जनदर्शन में एक ज्ञापन सौंपकर प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।

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📍 क्या है मामला?

ज्ञापन में उल्लेख है कि तहसील लटोरी अंतर्गत ग्राम भगवानपुर कला के खसरा क्रमांक 43, रकबा 1.71 हेक्टेयर (पुराना खसरा नंबर 5 से 12) की ज़मीन पण्डो जनजाति के झुरई पण्डो के नाम पर दर्ज थी। यह ज़मीन सेंटलमेंट रिकॉर्ड में भी दर्ज है, लेकिन आरोप है कि संबंधित हल्का पटवारी ने मिलीभगत कर ज़मीन को एक गैर-आदिवासी बंगाली परिवार के नाम पर अवैध रूप से नामांतरण कर दिया।

⚖️ कानून का उल्लंघन

यह नामांतरण छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 170 (ख) का स्पष्ट उल्लंघन है। इस धारा के अनुसार आदिवासी ज़मीन का गैर-आदिवासियों को हस्तांतरण बिना कलेक्टर की अनुमति के वैध नहीं होता। ऐसा पाया जाने पर ज़मीन को शून्य घोषित कर मूल मालिक को वापस दी जा सकती है।

🗣️ जनप्रतिनिधि की मांग और चेतावनी

नरेंद्र यादव ने ज्ञापन में मांग की है कि:
• ज़मीन तत्काल पण्डो परिवार को वापस की जाए
• दोषी पटवारी और अन्य राजस्व कर्मचारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई हो
• ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए निगरानी तंत्र बनाया जाए

उन्होंने चेतावनी दी, “यदि प्रशासन ने शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो पण्डो समुदाय के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ा जाएगा।

📜 पण्डो जनजाति की पहचान और संघर्ष

भारत सरकार द्वारा राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र का दर्जा प्राप्त पण्डो जनजाति, छत्तीसगढ़ की सबसे विशेष पिछड़ी और संवेदनशील जनजातियों में शामिल है। इस समुदाय की ज़मीन पर इस प्रकार का अवैध कब्ज़ा न केवल उनके आर्थिक अधिकारों का हनन है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान और अस्तित्व पर सीधा हमला है।

📚 विधिक पहलू: क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

कानूनी जानकारों के अनुसार, धारा 165 और 170 (ख) के तहत आदिवासी ज़मीन के किसी भी अवैध हस्तांतरण को निरस्त किया जा सकता है। ज़रूरी है कि जांच में यह स्थापित हो कि:
• नामांतरण में कलेक्टर की अनुमति नहीं ली गई
• दस्तावेज़ी प्रक्रिया में छल-कपट हुआ है

ऐसे मामलों में ज़मीन की चौहद्दी, वारिसों की जानकारी और रेवेन्यू रिकॉर्ड की मूल प्रविष्टियाँ विशेष महत्व रखती हैं

🧩 प्रशासनिक भूमिका पर सवाल

इस मामले में हल्का पटवारी की संलिप्तता से प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। यह साफ संकेत देता है कि ज़मीनी स्तर पर राजस्व अधिकारियों और दलालों की गठजोड़ आदिवासी अधिकारों को लगातार निगल रही है।

🧠 विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की राय

सामाजिक कार्यकर्ता शुभम अग्रवाल कहते हैं, “पण्डो जैसे समुदाय के साथ ऐसा व्यवहार प्रशासनिक शर्म का विषय है। यदि इस मामले को सख्ती से नहीं निपटाया गया, तो यह एक खतरनाक मिसाल बनेगा।”

🔍 कलेक्टर ने दिए जांच के निर्देश

कलेक्टर सूरजपुर ने जनदर्शन के दौरान प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए संबंधित राजस्व अधिकारियों को तत्काल जांच के निर्देश दिए हैं। अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि झुरई पण्डो और उनके परिवार को उनकी पुश्तैनी ज़मीन कब वापस मिलती है और क्या वाकई दोषियों पर कोई सख़्त कार्रवाई होती है या नहीं।

यह सिर्फ़ एक ज़मीन का मामला नहीं – यह पण्डो जनजाति की अस्मिता, उनके हक और अस्तित्व की लड़ाई है।

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