आरोप सिद्ध होने पर न्यायालय ने दी कथित आरोपी को 7 वर्ष के कठोर कारावास की सजा……

Rajesh Kumar Mishra
Rajesh Kumar Mishra
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NOW HINDUSTAN. Korba.  जानकारी के अनुसार पारिवारिक विवाद में पत्नी, पुत्र व पुत्री पर जानलेवा हमला करने के आरोपी को अपराध सिद्ध होने पर सत्र न्यायालय ने 7 वर्ष के कठोर कारावास (तीन बार) की सजा से दंडित किया है। उस पर तीन बार 5-5 हजार रुपये का अर्थदण्ड आरोपित किया गया है। साथ ही कहा गया है कि अर्थदण्ड की राशि का भुगतान न करने पर प्रत्येक में एक-एक वर्ष का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगताया जावे। उसकी सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। सत्र न्यायालय के लोक अभियोजक राजेन्द्र साहू ने बताया कि 12.06.2024 को दोपहर लगभग 2 बजे प्रार्थिया श्रीमती टीका बाई महंत ने थाना करतला में रिपोर्ट दर्ज कराया था कि वह ग्राम रामपुर में रहती है, घरेलू काम करती है। उसकी 03 लड़की, 01 लड़का है।

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दो लड़की की शादी हो गई है। एक लड़का और एक लड़की का शादी करना बाकी है। वह अपने पति से पिछले 05 वर्ष से अपने बच्चों के साथ अलग रहती है। पति के खिलाफ भरण-पोषण का केस कोरबा न्यायालय में पेश की है, जो चल रहा है। 10 जून 2024 को वह पेशी में बेटी के साथ गई थी व कोरबा में अपने भाई के घर रुकी थी। 12 जून को वह अपने बेटे, और बेटी के साथ मोटर सायकल में कोरबा से रामपुर घर गली के पास पहुंचे थे, कि उसका पति उसकी हत्या करने की नीयत से खड़ा था।

उन लोगों को देखकर टंगिया से मारना चालू कर दिया। मारने से उसके दाहिने हाथ, बांये पीठ, दाहिने कान, लड़का के दाहिने हाथ, पीठ के पास दाहिने कलाई में चोट लगा। लड़की के गर्दन के पास मारकर चोट पहुंचाया। उसकी लड़की ने डॉयल 112 को फोन किया। उसे डॉयल 112 में बैठाकर ईलाज हेतु करतला अस्पताल में भर्ती कराया गया।
उक्त रिपोर्ट के आधार पर थाना करतला में अभियुक्त के विरूद्ध अपराध क्रमांक- 55/ 2024 अंतर्गत धारा 307 भा.दं. सं. के अधीन अपराध पंजीबद्ध किया गया। करतला पुलिस ने प्रकरण को विचारण के लिए न्यायालय में प्रस्तुत किया। सत्र न्यायधीश एस. शर्मा ने 307 (तीन बार) के अपराध में आरोपी को दोष सिद्ध पाते हुए 7 वर्ष के कठोर कारावास (तीन बार) और अर्थदण्ड से दण्डित किया है। अर्थदण्ड का भुगतान न करने पर प्रत्येक में 01-01 वर्ष का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगताया जाएगा।

प्रकरण में बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि अभियुक्त आदतन अपराधी नहीं है, यह उसका प्रथम अपराध है, इसलिए उसे अभिरक्षा में बिताई गई अवधि तक के कारावास से दंडित किया जावे, उसे अर्थदंड से दंडित किया जावे। लोक अभियोजक ने कठोर दंड से दंडित किये जाने का निवेदन किया। उभयपक्ष द्वारा रखे गये तर्कों के श्रवण उपरांत एवं प्रकरण के अवलोकन बाद न्यायाधीश ने दण्डादेश में कहा कि- अभियुक्त का उक्त कृत्य गंभीर प्रकृति का है, इसलिए अपराध की गंभीरता को दृष्टिगत रखते हुए अभियुक्त के प्रति उदारतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाना कदापि उचित नहीं होगा। उचित दंड अधिरोपित किये जाने के संबंध में न्याय दृष्टांत को उदधृत करते हुए कहा कि वर्तमान प्रकरण में भी यदि दंड के बिंदु पर उदारतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाता है तो इससे समाज में गलत संदेश प्रसारित होगा तथा अपराधियों के मन में अपराध के प्रति डर की भावना समाप्त हो जायेगी।

न्यायदृष्टांत के अनुसार अपर्याप्त सजा देने के लिये अनावश्यक सहानुभूति न्याय प्रणाली को और अधिक नुकसान पहुंचाएगी तथा कानून की प्रभावकारिता में जनता के विश्वास को कमजोर करेगी और समाज ऐसे गंभीर खतरों के तहत लंबे समय तक टिक नहीं सकता। इसलिए प्रत्येक न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह अपराध की प्रकृति और उसके निष्पादन या कारित करने के तरीके आदि को ध्यान में रखते हुए उचित दंड प्रदान करे।

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