शिक्षकों को ‘आवारा कुत्तों’ की गिनती का जिम्मा! क्या सरकार इसी तरह शिक्षा और सम्मान की करेगी रक्षा?…….

Rajesh Kumar Mishra
Rajesh Kumar Mishra
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NOW HINDUSTAN. Korba. नवा रायपुर। छत्तीसगढ़ लोक शिक्षण संचालनालय के हालिया आदेश ने पूरे शिक्षा जगत में असंतोष की लहर पैदा कर दी है। जारी पत्र में शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे स्कूल परिसर और आसपास के क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की संख्या व गतिविधियों की जानकारी एकत्र कर पंचायत या निकाय को उपलब्ध कराएं। साथ ही, काटने की स्थिति में बच्चों के उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी शिक्षकों पर ही डाल दी गई है।

शिक्षकों का तीखा सवाल उभरकर सामने आया है—
“क्या अब शिक्षा विभाग का काम पढ़ाना है या आवारा कुत्तों की निगरानी करना?”

शिक्षा विशेषज्ञों ने भी इसे स्पष्ट रूप से एक चिंताजनक संकेत बताया है। उनका कहना है कि जब राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षक-छात्र अनुपात और बुनियादी संसाधनों की कमी जैसे मुद्दे पहले से चुनौती बने हुए हैं, ऐसे गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ शिक्षकों पर डालना शिक्षा व्यवस्था की वास्तविक प्राथमिकताओं पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

“यदि हर गैर-जरूरी काम शिक्षकों से ही करवाना है, तो फिर शिक्षा सुधार की बातें केवल कागजों में ही अच्छी लगती हैं।”

विद्यालयों में पहले से ही शिक्षक मतदाता सूची, सर्वेक्षण, योजनाओं के डेटा संग्रह, जनगणना और अनेक प्रशासनिक कार्यों में लगे रहते हैं। अब आवारा कुत्तों की मॉनिटरिंग जैसे ‘अतिरिक्त बोझ’ से न केवल उनकी ऊर्जा विभाजित होगी बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रभावित होगा।

इस पूरे प्रकरण पर रोटरी क्लब के अध्यक्ष नितिन चतुर्वेदी ने भी गहरी चिंता और खेद व्यक्त किया है। उनका कहना है कि
“शिक्षक समाज की रीढ़ हैं। उनके सम्मान और कार्यक्षमता को कमजोर करने वाले ऐसे निर्देश शिक्षा की मूल भावना के विपरीत हैं। सरकार को इसे तुरंत वापस लेकर शिक्षकों को उनके वास्तविक कार्य—ज्ञान प्रदान करने—पर केंद्रित रहने देना चाहिए।”

शिक्षक समुदाय और शिक्षा से जुड़े संगठन राज्य सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि वह इस आदेश पर पुनर्विचार करे और स्कूलों के शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कामों के बोझ से मुक्त रखे।

 

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