आत्मा को भोजन प्रदान करती है श्रीराम कथा – पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज….

Rajesh Kumar Mishra
Rajesh Kumar Mishra
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NOW HINDUSTAN एक स्वस्थ मनुष्य ही हर प्रकार के कार्यों को करने में सक्षम हो पाता है और इसके लिए उसके शरीर को स्वस्थ रहना बहुत आवश्यक होता है। ठीक इसी प्रकार हमारी आत्मा को भी स्वस्थ रखने का एक सरल तरीका है सत्संग में जाना और श्रीराम कथा का आश्रय। श्री राम कथा आत्मा को भोजन प्रदान करती है।

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उक्त बातें कोरबा के एस ई सी एल कुसमुंडा क्षेत्र में शुक्रवार से शुरू सप्त दिवसीय श्रीराम कथा के प्रथम दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि अगर जीवन में हमें आत्मिक सुख की प्राप्ति करनी है तो हमें श्री राम कथा का गायन, मनन और श्रवण जरूर करना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि हम घंटों बैठकर से रामकथा सुने अगर हम मन लगाकर 20 मिनट भी कथा सुनते हैं तो यह हमें आत्मिक सुख की प्राप्ति कराती है।


पूज्य महाराज श्री ने कहा कि राम जी के विभिन्न विकल्पों में अलग-अलग प्रकार से अवतार हुए हैं और इसी कारण से अलग अलग तरीके से रामायण की रचना भी हुई है जिसने जैसा देखा वैसा लिखा है इसीलिए मानस जी में लिखा गया है कि रामायण सत कोटि अपारा। यही वजह है कि पिछले 31 वर्षों से भी अधिक समय से मैं उसे राम कथा का गायन कर रहा हूं और मुझे यह नित नवीन लगती रही है। हमारे सनातन सद्ग्रन्थों ने कहा है कि किसी भी ग्रंथ को अगर पांच सौ बार विधि पूर्वक पढ़ ले तो यह कंठ में उतर आता है। और रामचरितमानस कंठ में उतर जाने के बाद हर एक शब्द के अर्थ अपने आप प्रस्फुटित होने लगते हैं।
पूज्य महाराज जी ने कहा कि मानस जी सरल ग्रंथ नहीं है। इनकी महिमा का बखान विभिन्न संतो ने बारंबार किया है। श्रीरामचरितमानस तुलसी दल के उस एक पत्ते के समान हैं जिनके बिना भगवान की पूजा अधूरी रह जाती है। ठीक है इसी प्रकार से कोई भी विद्वान कोई भी ग्रंथ पढ़ ले लेकिन अगर उसने मानस जी का पठन-पाठन नहीं किया तो उसकी यात्रा अधूरी रह जाती है।
पूज्य श्री ने कहा कि ग्रंथ का तात्पर्य यह होता है कि वह साहित्य जो हमारे अंदर की ग्रंथियों को खोल दे। जब हम श्रेष्ठतम लक्ष्य के साथ ईमानदारी से प्रयास करते हैं तो ईश्वर भी हमारे कार्य को पूरा करने में सहयोगी बनते हैं। जीवन में कुछ भी पाना है तो हमें चलना तो अवश्य पड़ेगा।

पूज्यश्री ने कहा कि पिछले कई जन्मों के पुण्य का संग्रह हमें सनातन धर्म में जन्म लेने के का अवसर प्रदान करता है । इसे व्यर्थ ही नहीं गंवाना चाहिए और भटकना भी नहीं चाहिए।
रामचरितमानस में मनुष्य के जीवन जीने के लिए कई उपयुक्त और बहुत ही सटीक सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं।
इस आयोजन में महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। आठवें दिन की कथा का श्रवण करने के लिए एस ई सी एल के कुसमुंडा क्षेत्र के महाप्रबंधक संजय मिश्रा, सह यजमान जेपी शुक्ला सहित दर्जनों विशिष्ट जनों ने व्यासपीठ का पूजन और आरती की।

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