NOW HINDUSTAN हमने सनातन धर्म में जन्म लिया है तो हमारे लिए यह भी जानना आवश्यक है कि हम किनका भजन करें। जिस किसी का भजन भी नहीं करना चाहिये। आजकल भूत प्रेत पिशाच जोगिनी जमात की पूजा कर भी परंपरा चल पड़ी है जो बहुत ही घातक स्थिति है। अघोर पंथ की पूजा पद्धति में जाने वाले का एक अंग खराब होना सुनिश्चित होता है।
उक्त बातें कोरबा के एस ई सी एल कुसमुंडा क्षेत्र में शुक्रवार से शुरू सप्त दिवसीय श्रीराम कथा के दूसरे दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
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श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि अगर आपको यह पता नहीं है कि हमें किनका भजन करना चाहिए तो सीधे ओम नमः शिवाय का भजन करें। शिव जी सेवा आपको यह बता देगा या वह रास्ता दिखा देगा कि आपको किनका भजन करना चाहिए। अगर आप वैष्णव हैं तो राम जी कृष्ण जी का, शैव हैं तो शिवजी का और शाक्त हैं तो मां भगवती की उपासना करें। यह भी ध्यान रखना है कि देवताओं का पूजन केवल सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए करना होता है जबकि भगवान का भजन परमार्थ यात्रा को सुनिश्चित करने के लिए होता है।
पूज्यश्री ने कहा कि आजकल लोग कहते हैं कि हमें गुरु बनाना है, गुरु बनाया नहीं जा सकता है। गुरु तत्व की उपस्थिति से गुरु होते हैं। कुछ तो गुरुजी का परीक्षण करने की बात करते हैं। संत, मंत्र, सद्ग्रन्थों और गुरुजी का परीक्षण नहीं करना चाहिए। हम गुरु की शरण में जाते हैं। मंत्रदीक्षा उसी से लो जिसका मार्गदर्शन लेने आप आ जा सको। दीक्षा एक ऐसा संस्कार है जिससे मनुष्य जीवन में चैतन्यता आ जाती है।
मनुष्य को अपने जीवन में अपने कर्म को हमेशा धर्म सम्मत रखने की आवश्यकता होती है। जब हमारा कर्म बिगड़ता है तो फिर लाख प्रयास करने के बाद भी हमारी मती गति काल के वश में चली जाती है।
मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों का आना निश्चित है एक आता है तो एक चला जाता है। दुख हो या सुख दोनों ही अपने ही कर्मों के अनुसार ही मनुष्य के जीवन में आता है।
प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम कथा गायन के क्रम में श्री राम के मानव शरीर धारण करने के कारणों और प्राकट्य से जुड़े प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि अपने जीवन काल में ही हमें अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी तैयार करने की आवश्यकता है, तभी तो कई पीढ़ियों तक परमार्थ चलता रहता है।
महाराज श्री ने कहा कि राम जी की भक्ति प्राप्त करने के लिए हमें शिव जी की कृपा प्राप्त करनी पड़ती है।
हमारे सद्ग्रन्थों का एक सरल सिद्धांत यह भी है कि आदमी को सब कार्य छोड़कर भी भोजन करना चाहिए, हजार कार्य छोड़कर स्नान करना चाहिए और एक लाख कार्य छोड़कर भी दान करना चाहिए। चाहे वह दान थोड़ा ही हो। लेकिन, यह सभी कुछ छोड़ कर के भगवान का भजन करना चाहिए। सती चरित्र, भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से जुड़े प्रसंगों और भगवान श्री राम का प्राकट्य की कथा का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे।
इस आयोजन में महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। कथा के मुख्य यजमान और एस ई सी एल के कुसमुंडा क्षेत्र के महाप्रबंधक श्री संजय मिश्रा ने आयोजन समिति के सदस्यों के साथ व्यासपीठ का पूजन और आरती की।