कोरबा NOW HINDUSTAN भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) साढ़े पांच दशकों में विश्वस्तरीय धातु उत्पादन, उत्पादकता, गुणवत्ता और उत्कृष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में मिसाल साबित हुआ है। कंपनी के सामुदायिक विकास परियोजना ‘मोर जल मोर माटी’ का प्रमुख उद्देश्य सिंचाई सुविधाओं को बढ़ाने, फसल उत्पादन में वृद्धि, किसानों को नवीनतम कृषि तकनीकों से अवगत कराने के साथ जल और मृदा प्रबंधन को उत्कृष्ट बनाना है। परियोजना के मुख्य घटकों में कृषि, जल प्रबंधन, पशुपालन, मत्स्य पालन, बाड़बंदी, वनोपज एवं वन संरक्षण और लाख की खेती शामिल है।
बालको ने किसानों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनने के लिए विभिन्न परियोजनाओं को लागू किया है। कृषि तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए बालको की प्रतिबद्धता के अनुरूप बोरवेल (सौर संचालित), कुआं, तालाब, चेक डेम का निर्माण एवं नवीनीकरण के माध्यम से सुरक्षित सिंचाई को सुनिश्चित किया। बिजली एवं डीजल पंपों के माध्यम से सूक्ष्म सिंचाई तथा ड्रिप सिंचाई प्रणाली और सौर संचालित पंपों को बढ़ावा देने के साथ ही विभिन्न प्रशिक्षण से किसानों को कृषि प्रणाली के प्रति संवेदनशील बनाया है।
किसानों को हरेली त्योहार के दौरान सिस्टम फॉर राइस इंटेंसिफिकेशन (एसआरआई) पर प्रशिक्षण देकर रोपाई विधि को आसान बनाया। मोर जल मोर माटी परियोजना के तहत कंपनी ने 600 से अधिक किसानों को टिकाऊ और उन्नतशील चावल की खेती करना सिखाया जिससे पैदावार में वृद्धि और कृषक समुदायों के लिए बेहतर आजीविका सुनिश्चित हुई। पारंपरिक रोपाई पर निर्भर किसानों को खरपतवार, पोषक तत्वों, प्रकाश संलेषण और पानी की कमी से धान की उपज में बाधा तथा कीट और बीमारी आदि की समस्याएं थी।
एसआरआई विधि चावल उत्पादन के लिए टिकाऊ और विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण के रूप में सहायक है जो अधिकतम पैदावार पर केंद्रित है। एसआरआई के साथ किसानों को सावधानीपूर्वक दूरी वाले ग्रिड पैटर्न में एकल पौधों को प्रत्यारोपित करने से धान की अधिकतम उत्पादन और गुणवत्तापूर्ण खेती सुनिश्चित हुई। कृषकों को धान के फसल में पंक्तियों के महत्व के बारे में भी अवगत कराया गया जिससे प्रभावी खरपतवार प्रबंधन हुआ और हाथ और रोटरी निराई के लिए जगह मिली। किसानों द्वारा कृषि पद्धतियों में एसआरआई अपनाने से इस वर्ष 600 एकड़ से अधिक कृषि भूमि में उत्पादकता में वृद्धि होगी।
कंपनी के ‘मोर जल, मोर माटी’ परियोजना की मदद से छत्तीसगढ़ के महुआ किसानों के आय में वृद्धि हुई है। किसानों को गुणवत्ता के आधार पर छंटाई, भंडारण और समग्र प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण कौशल में प्रशिक्षित किया जो उन्हें उत्पाद की गुणवत्ता के अनुरूप आय प्राप्त करने में सक्षम बनाया। छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में बहुतायत में पाया जाने वाला महुआ का पेड़ आदिवासी समुदाय की आजीविका का प्रमुख स्रोत है। प्रशिक्षण से पहले महुआ किसान अपनी उपज को बिना छांटे सीधे मंडियों में ले जाते थे जहां ग्राहकों को गुणवत्ता में कमी के कारण कम आय प्राप्त होता था।
किसान को इन्हीं नुकसानों से बचाने के लिए बालको ने स्वयं सेवी संगठन एक्शन फॉर फूड प्रोडक्शन (एएफपीआरओ) के साथ मिलकर गुणवत्ता प्रबंधन प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए। सत्र में किसानों को छँटाई एवं श्रेणीबद्ध महुआ के नमूने दिखाए गए तथा अच्छी उपज को अलग करने और उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए उत्पादन को ग्रेड देने की आवश्यकता को बताया गया। प्रशिक्षण से किसानों की आय में वृद्धि के साथ उनके ग्राहकों को बिना जोखिम गुणवत्तापूर्ण उत्पाद मिल रहा हैं तथा जिसका लाभ अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाया जाएगा। जिले में महुआ के लिए एक उचित और खुले बाजार को बढ़ावा मिला तथा प्रशिक्षण सत्रों से 11 विभिन्न समुदायों के 110 से अधिक किसान लाभान्वित हुए।
कृषि की अत्याधुनिक तकनीकों से ग्रामीणों को परिचित कराने के उद्देश्य से मॉडल एग्री-फार्म वेदांता एग्रीकल्चर रिसोर्स सेंटर (वीएआरसी) विकसित किया गया है। इसका संचालन कृषक उत्पादक संघ (एफ.पी.ओ.) द्वारा किया जाता है। इससे कृषकों को मृदा परीक्षण, सिंचाई की अत्याधुनिक सुविधाएं, सब्जी की खेती, मल्टीलेयर फार्मिंग, एसआरआई, एसडब्ल्यूआई, ट्रेलिस फार्मिंग, हाइड्रोपोनिक्स और बायो फ्लोक के माध्यम से मत्स्य पालन तथा सब्जियों के संरक्षण विशेषज्ञों द्वारा कृषि की अत्याधुनिक तकनीकों और शासकीय योजनाओं की जानकारी दी जाती है। कृषि नवाचार को बढ़ावा देने की दृष्टि से कुछ विदेशी सब्जियों के उत्पादन की परियोजना भी शुरू हो चुकी है।
वित्तीय वर्ष 2023 में अपने आसपास के गांवों के 21 सामुदायिक जल संरचनाओं का नवीनीकरण कर स्थायी जल प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। बालको ने बीते दशक में 1.25 लाख क्यूबिक मीटर से अधिक की कुल क्षमता वाली 151 से अधिक जल संरचनाओं का निर्माण किया जिससे वर्ष में एक से अधिक फसल के पैदावार होने से लगभग 32 से अधिक पड़ोसी गांव लाभान्वित हुए हैं। इन संरचनाओं ने मिट्टी की नमी को बढ़ाने और भूजल स्तर को बनाए रखने में भी योगदान दिया है जिससे क्षेत्र में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कंपनी का लक्ष्य वर्ष 2030 तक नेट वाटर पॉजिटिविटी को हासिल करना है।
वर्तमान में मोर जल मोर माटी परियोजना 32 गांवों में 1400 एकड़ से अधिक भूमि के साथ 2400 किसानों तक अपनी पहुंच बना चुका है। इस परियोजना के तहत 70% से अधिक किसानों ने आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाया है जिसमें सिस्टमेटिक राइस इंटेंसीफिकेशन (एसआरआई), ट्रेलिस, जैविक खेती, जलवायु अनुकूल फसल, सब्जी और गेहूं की खेती आदि जैसी आजीविका बढ़ाने वाली गतिविधियों में लगे हुए हैं। लगभग 15% किसान आजीविका के लिए कृषि से साथ पशुपालन, बागवानी और वनोपज जैसी गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। किसानों के औसत वार्षिक आय में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि और लागत में 40 प्रतिशत की कमी आई है।