NOW HINDUSTAN कोरबा इस बार स्नान दान श्राद्ध सहित वट सावित्री व्रत गुरुवार को है.वट सावित्री व्रत का व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है. यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं. यदि आपका विवाह हाल फिलहाल हुआ है और आप पहली बार वट सावित्री व्रत रखने वाली हैं तो आपको वट सावित्री व्रत के पूजन सामग्री, पूजा मुहूर्त, कथा, पूजन की विधि आदि के बारे में सही जानकारी होना चाहिए.।
इस संबंध में मां शारदा देवीधाम मैहर के ज्योतिषाचार्य पं. मोहनलाल द्विवेदी ने बताया कि इसे बरगदाई भी कहा जाता है । महिलाए इसी बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ करती है । शनि भगवान की उत्तपत्ति जेष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या को मानी गई है । जिससे हम शनि जयंती के रूप में शनि भगवान के विधिवत पूजन अर्चन के साथ मनाते है, इसे भी आज गुरुवार को ही माना जायेगा । शनिदेव से संबंधित अनुष्ठान इत्यादि के लिए इसे महत्वपूर्ण माना जाता है ।
पंडित द्विवेदी ने बताया कि ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का प्रारंभ: 5 जून, बुधवार, शाम 06 बजकर 57 मिनट से तथा समापन: 6 जून, गुरुवार, शाम 05 बजकर 35 मिनट होगा ।
परब्रह्म मुहूर्त:
सूर्योदय से पूर्व 04:02 से 04:42 तक
अभिजीत मुहूर्त:
11:52 दिन से 12:48 दिन तक
शुभ-उत्तम मुहूर्त:
सुबह 5:23 से 07:07 तक
लाभ-उन्नति मुहूर्त: दोपहर 12:20 से 02:04 तक
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: दोपहर 02:04 से 03:49 तक है.
वट सावित्री व्रत की पूजा सामग्री लिस्ट
1. रक्षा सूत्र, कच्चा सूत,2. बरगद का फल, बांस का बना पंखा,3. कुमकुम, सिंदूर, फल, फूल, रोली, चंदन4. अक्षत्, दीपक, गंध, इत्र, धूप5. सुहाग सामग्री, सवा मीटर कपड़ा, बताशा, पान, सुपारी6. सत्यवान, देवी सावित्री की मूर्ति7. वट सावित्री व्रत कथा और पूजा विधि की पुस्तक8. पानी से भरा कलश, नारियल, मिठाई, मखाना आदि9. घर पर बने पकवान, भींगा चना, मूंगफली, पूड़ी, गुड़,10. एक वट वृक्ष
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
6 जून को व्रती महिलाओं को वट सावित्री व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए. फिर शुभ मुहूर्त में आपको वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए सामग्री एकत्र करके किसी बरगद के पेड़ के पास जाना चाहिए. वहां उसके नीचे ब्रह्म देव, देवी सावित्री और सत्यवान की मूर्ति को स्थापित करें. फिर उनका जल से अभिषेकर करें.
उसके बाद ब्रह्म देव, सत्यवान और सावित्री की पूजा करें. एक-एक करके उनको पूजा सामग्री चढ़ाएं. फिर रक्षा सूत्र या कच्चा सूत लेकर उस बरगद के पेड़ की परिक्रमा 7 बार या 11 बार करते हुए उसमें लपेट दें. फिर आसन पर बैठ जाएं. अब आप वट सावित्री व्रत की कथा सुनें. फिर ब्रह्म देव, सावित्री और सत्यवान की आरती करें. आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की कथा.
वट सावित्री व्रत कथा
स्कंद पुराण में वट सावित्री व्रत की कथा के बारे में वर्णन मिलता है, जिसमें देवी सावित्री के पतिव्रता धर्म के बारे में बताया गया है. देवी सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था, लेकिन वे अल्पायु थे. एक बार नारद जी ने इसके बारे में देवी सावित्री को बता दिया और उनकी मृत्यु का दिन भी बता दिया.
सावित्री अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए व्रत करने लगती हैं. वे अपने पति, सास और सुसर के साथ जंगल में रहती थीं. जिस दिन सत्यवान के प्राण निकलने वाले थे, उस दिन वे जंगल में लकड़ी काटने गए थे, तो उनके साथ सावित्री भी गईं.
उस दिन सत्यवान के सिर में तेज दर्द होने लगा और वे वहीं पर बरगद के पेड़ के नीचे लेट गए. देव सावित्री ने पति के सिर को गोद में रख लिया. कुछ समय में यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण हरकर ले जाने लगे. उनके पीछे-पीछे सावित्री भी चल दीं.
यमराज ने उनको समझाया कि सत्यवान अल्पायु थे, इस वजह से उनका समय आ गया था. तुम वापस घर चली जाओ. पृथ्वी पर लौट जाओ. लेकिन सावित्री नहीं मानीं. उनके पतिव्रता धर्म से खुश होकर यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए, जिससे सत्यवान फिर से जीवित हो उठे. ज्येष्ठ अमावस्य तिथि को यह घटनाक्रम हुआ था और अपने पतिव्रता धर्म के लिए देवी सावित्री प्रसिद्ध हो गईं.
उसके बाद से ज्येष्ठ अमावस्य को ज्येष्ठ देवी सावित्री की पूजा की जाने लगी. वट वृक्ष में त्रिदेव का वास होता है और सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही जीवनदान मिला था. इस वजह से इस व्रत में वट वृक्ष, सत्यवान और देवी सावित्री की पूजा करते हैं।