सूचना अधिकार के तहत छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग की सख़्त कार्यवाही – ग्राम पंचायत पेलमा के सचिव को तलब, जवाबदेही तय करने के निर्देश……

Rajesh Kumar Mishra
Rajesh Kumar Mishra
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NOW HINDUSTAN. Korba. 0रायगढ़।  सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत दाखिल अपील पर छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग ने एक बार फिर सख़्त रुख अपनाया है। रायगढ़ जिले के तमनार विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत बजरमुड़ा (पो. सराइटोला) के सूचना न देने के मामले में आयोग ने पंचायत सचिव और जनपद पंचायत तमनार के अधिकारियों को सीधे नोटिस जारी कर जवाबदेही तय करने के निर्देश दिए हैं।

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यह मामला अपीलकर्ता कार्तिक राम पोर्ते, निवासी ग्राम बजरमुड़ा, का है, जिन्होंने पंचायत स्तर पर मांगी गई सूचना समय सीमा में न दिए जाने की शिकायत आयोग तक पहुंचाई थी। प्रथम अपील में भी जानकारी न मिलने पर उन्होंने राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील दायर की थी, जिस पर सुनवाई के लिये आयोग ने संबंधित अधिकारियों को तलब किया है।

आयोग का सख्त निर्देश : राज्य सूचना आयोग, नया रायपुर, द्वारा जारी पत्र (क्रमांक 145017/ए.आई./3924/2024/रायगढ़) में कहा गया है कि-

“वर्तमान जनसूचना अधिकारी को निर्देशित किया जाता है कि अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई सूचना के संबंध में सभी अभिलेखों की सत्यापित प्रतिलिपि आयोग को प्रस्तुत करें। यदि समय सीमा में सूचना नहीं दी गई तो सूचना अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारंभ की जा सकती है।”

आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि संबंधित अधिकारी यदि सुनवाई में अनुपस्थित रहते हैं, तो उनकी अनुपस्थिति को “जानबूझकर की गई लापरवाही” माना जाएगा, जिसके लिए विभागीय कार्रवाई की जाएगी।

सुनवाई की तारीख तय : आयोग ने इस प्रकरण की द्वितीय अपील की सुनवाई 9 दिसंबर 2025 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जिला सूचना विज्ञान केंद्र, रायगढ़ में निर्धारित की है। अपीलकर्ता और संबंधित अधिकारी दोनों को निर्धारित तिथि पर उपस्थित रहने के आदेश दिए गए हैं।

सूचना अधिकार कानून का मखौल : इस प्रकरण से एक बार फिर स्पष्ट होता है कि ग्रामीण स्तर पर सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI) को लेकर निचले स्तर के अधिकारी कितने उदासीन और लापरवाह हैं। नागरिकों द्वारा मांगी गई जानकारी को न देना न केवल कानूनी उल्लंघन है बल्कि लोकतांत्रिक पारदर्शिता पर चोट भी है।

कार्तिक राम पोर्ते ने कहा-“ग्राम पंचायत में पारदर्शिता की मांग करना जैसे अपराध हो गया है। महीनों बीत गए, फिर भी सचिव और जनपद अधिकारियों ने सूचना नहीं दी। आयोग का यह कदम स्वागत योग्य है, ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी जनसूचना कानून को हल्के में न ले।”

छत्तीसगढ़ में राज्य सूचना आयोग की यह सक्रियता नागरिक अधिकारों की दिशा में एक सशक्त कदम मानी जा रही है। यदि आयोग इस प्रकरण में कठोर निर्णय लेता है तो यह राज्यभर के पंचायत सचिवों और प्रशासनिक तंत्र को कड़ा संदेश देगा कि सूचना छिपाना अब महंगा पड़ेगा।

ग्राम पंचायत पेलमा के सचिव और संबंधित जनपद अधिकारियों को राज्य सूचना आयोग ने तलब कर 9 दिसंबर को सुनवाई में उपस्थित होने के आदेश दिए हैं। सूचना न देने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का खतरा मंडरा रहा है।

यह मामला जनसूचना के अधिकार की ताकत और स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही दोनों को उजागर करता है।

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