NOW HINDUSTAN. Korba. पता नहीं क्या हो रहा है इस देश में सिर्फ दिखावो पर जिया जा रहा है। जमीन हकीकत तो कोसों दूर है सिर्फ घोषणा ही घोषणाएं दिखाई दे रही है। और घोषणा वीर मंच पर चढ़कर सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन हकीकत उसे कोसो दूर है हम बात करें गौ माता की तो गौ माता को हम लोग पूजनीय मानते हैं उसे मां का दर्जा देते हैं लेकिन यह सिर्फ दिखावे तक है हकीकत तो कुछ और ही है। सड़कों पर बैठी गए यहां वहां घूम रही गायों पर किसकी नजर है। आए दिन सड़कों पर दुर्घटना का शिकार हो रही है लेकिन उन्हें बचाने वाला कौन है। एक छोटी सी बात हो जाए तो बड़े-बड़े हंगामा हो जाते हैं लेकिन सड़क पर उतरकर इन गायों की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है। गोपाष्टमी के नाम पर बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं करोड रुपए खर्च कर दिए जाते हैं लेकिन यह आयोजन सिर्फ दिखावा ही प्रतीत होते हैं क्योंकि आज भी सड़कों पर गाय बैठी लाचार नजर आती है जैसे वह कह रही हो कि हमारा तो कोई नहीं है। सिर्फ लोग जोर-जोर से चिल्लाने का काम कर रहे हैं आज भी सरकार गायों को लेकर कोई ठोस कानून नहीं बन पा रही है आज भी देश में कत्ल खाने बंद नहीं हुए हैं। आज भी देश से में गौ मांस की बिक्री बंद नहीं हुई है क्योंकि जब हम ही गौ मांस का भक्षण करेंगे तो कैसे न गाय कटेगी । जब हम भी हमारे देश से गौ मांस विदेशों को भेजेंगे, हजारों करोड़ों का कारोबार गौ हत्या से जुड़ा है। लेकिन एक भी व्यक्ति या सरकार इसको लेकर नहीं सोचती है सिर्फ नारेबाजी और हंगामा ही करना आता है। सड़क पर एक गाय अगर दुर्घटना का शिकार हो जाए तो हंगामा मच जाता है लेकिन उस गाय को सड़क से हटाने के लिए कोई गौ रक्षक सामने नहीं आता है। ऐसी दोहरी नीति का क्या मतलब है क्या यह सिर्फ राजनीतिक और वोट के लिए किया जाता है या फिर उन नौजवानों को उसे दिशा में धकेल दिया जाता है जहां वह सिर्फ ना पढ़ाई करें ना रोजगार की मांग करें ना किसी चीज पर ध्यान दें सिर्फ ध्यान दे तो गायों पर हो रही अत्याचार को लेकर ।
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एक सरकार गायों को लेकर गौठन बनती है तो दूसरी सरकार उन्ही गौठानों पर ध्यान देना छोड़ देती है । योजनाएं बनाई जाती हैं और बंद कर दी जाती हैं लेकिन कोई ठोस योजना नहीं बनाई जाती। क्योंकि ठोस योजना में बार-बार कमाई जो नहीं होगी, भ्रष्टाचार नहीं होगा। इसलिए पहले तोड़ो फिर जोड़ो फिर तोड़ो की राजनीति चलती रहती है। हमारी क्या जिम्मेदारी है इसके लिए भी सोचना जरूरी हो गया है या फिर हम अपनी जिम्मेदारियां को दूसरों पर लाद कर उन्हें गलत साबित करने पर जुट जाएंगे। है ऐसे कुछ समाजसेवी लोग जो निस्वार्थ भाव से गायों की सेवा करते हैं लेकिन उनके साथ भी कितने लोग जुड़े हैं उनके साथ कौन जुड़ना चाहता है उनकी संख्या बहुत ही काम है लेकिन एक हंगामा तो हो जाए हजारों लोग सड़क पर उतर आएंगे