चैत्र संकष्टी चतुर्थी व्रत आज…

Rajesh Kumar Mishra
Rajesh Kumar Mishra
8 Min Read

कोरबा NOW HINDUSTAN हिंदू धर्म में चैत्र संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। चैत्र संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। चैत्र मास में पड़ने के कारण इसे भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। सूर्योदय के समय शुरू होने वाला संकष्टी व्रत चंद्रमा के दर्शन के बाद ही समाप्त होता है।

इस दिन गणेश जी की पूजा षोडशोपचार विधि से की जाती है। गणपति पूजा से जीवन में चल रहे हर तरह के विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं। इसलिए भगवान श्री गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन इसकी कथा सुनने से भी भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष संकष्टी चतुर्थी का व्रत 11 मार्च 2023 दिन शनिवार को रखा जाएगा।

भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी तिथि एवं चंद्रोदय

चैत्र संकष्टी चतुर्थी प्रारंभः 09.42 PM (10 मार्च, 2023, शुक्रवार)

चैत्र संकष्टी चतुर्थी समाप्तः 10.05 PM (11 मार्च, 2023, शनिवार)

चन्द्रोदयः 22.03 PM

चैत्र संकष्टी चतुर्थी का महात्म्य

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। चैत्र मास में पड़ने के कारण इसे भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत विधि-विधान से करना चाहिए, तभी उसका पूर्ण पुण्य और लाभ प्राप्त किया जा सकता है। संकष्टी के दिन विधि-विधान से गणेश जी की पूजा करने से यश, धन, वैभव, नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और घर के सारे संकट दूर हो जाते हैं।

चैत्र संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

गणेश संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, व्रत करें और मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें। शाम के समय मंदिर के पास चौकी स्थापित करें और उसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाएं। उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। गंगाजल छिड़ककर प्रतीकात्मक स्नान करें। अब मूर्ति के सामने धूप-दीप जलाएं। गणेशजी के आवाहन मंत्र का जाप करें।

चतुर्थी पूजा में शामिल करें ये सामग्री

गणेश जी को दूर्वा, पान, सुपारी, सिंदूर, रोली, अक्षत, इत्र अर्पित करें। प्रसाद में मोदक और फल अर्पित करें। गणेश चालीसा का पाठ करें। इस दिन चैत्र संकष्टी चतुर्थी की कथा सुनें या सुनाएं। चंद्रोदय पर चंद्रमा को अर्घ्य दें और दीपक जलाकर पूजा करें। यदि किसी कारण से चंद्र दर्शन संभव न हो तो पंचांग में बताए गए चंद्रोदय के समय के अनुसार प्रतीकात्मक रूप से चंद्रमा की पूजा करें।

गणेश संकट चतुर्थी व्रत कथा

एक समय माता पार्वती तथा श्री गणेश जी महाराज विराजमान थे। तब माँ पार्वती ने गणेश चतुर्थी व्रत का महात्म्य गणेशजी से पूछा ! हे पुत्र ! चैत्र कृष्ण पक्ष में तुम्हारे विकट चतुर्थी को तुम्हारी पूजा कैसे करनी चाहिए ? सभी बारह महीनों की चतुर्थी तिथि के तुम अधिष्ठ्दाता हो। कलिकाल में इस व्रत की क्या महिमा हैं यह मुझसे कहो इसका क्या विधान हैं।
तब गणेश जी ने कहा कि हे सभी के मन की बात को जानने वाली माता आप अन्तर्यामी हैं आप सर्वज्ञता हैं परन्तु मैं आपके आदेश से इस व्रत की महिमा को बतलाता हूँ। चैत्र कृष्ण चतुर्थी के दिन ‘वीकट’ नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। दिन भर निर्जल व्रत रखकर रात्रि में षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। ब्राह्मण भोजन के अनन्तर स्वयं व्रती को इस दिन पंचगव्य (गौ का गोबर, मूत्र, दूध, दही, घी) पान करके रहना चाहिए। यह व्रत संकट नाशक है। इस दिन शुद्ध घी के साथ बिजौरे, निम्बू का हवन करने से बाँझ स्त्रियां भी पुत्रवती होती हैं। हे माते ! इस व्रत की महिमा बहुत विचित्र है , मैं उसे कह रहा हूँ। इस चतुर्थी तिथि के दिन मेरे नाम के स्मरण मात्र से ही मनुष्य को सिद्धि मिलती है।
एक मकरध्वज नाम के राजा थे।राजा मकरध्वज बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे उनके शासन काल में प्रजा सुख पूर्वक जीवन यापन क्र रही थी। राजा सदैव अपनी प्रजा का अपनी सन्तान की भांति पालन पोषण करते थे। अतः उसके राज्य में प्रजा पूरी तरह सुखी ओर प्रसन्न थी प्रजा भी एक दुसरे का सहयोग करते हुए धार्मिक कार्यो में सलग्न रहती थी। राजा मकरध्वज धर्मकर्म में सदैव ही तत्पर रहते थे। राजा पर मुनि यज्ञयवल्क्य का बड़ा स्नेह था। उनके ही आर्शीवाद से राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई।
राज्य के अधिकतर कार्य भार उनका एक विश्वासपात्र मन्त्री चलाता था। मन्त्री का नाम धर्मपाल था। धर्मपाल के पांच पुत्र थे। सभी पुत्रों का विवाह हो चुका था। सबसे छोटे बेटे की बहू गणेशजी की भक्त थी और उनका पूजन किया करती थी। वह बारह महीनों के चतुर्थी व्रत किया करती थी। परन्तु धर्मपाल की पत्नी नास्तिक थी उसे धार्मिक कार्यों में जरा भी रूचि नहीं थी। उसको बहू की गणेश-भक्ति जरा भी अच्छी नहीं लगती थी। वह सदैव ही बहु की आराधना से भयभीत रहती थी। सास ने बहू द्वारा गणेश-पूजा को बंद कर देने के लिए अनेक उपाय किये, पर कोई उपाय सफल नहीं हुआ। बहूँ को भगवान ग्नर्श्जी पर पूरी श्रद्ध एवं विस्वास था। अतः वह विश्वास के साथ उनकी पूजा करती रही।
गणेशजी भगवान बड़े विचित्र हैं उन्होंने अपने भक्त के दुःख को दूर करने के लिए सास को सबक सिखाने का सोचा। गणेश जी भगवान ने सोचा की यदि मैंने इसका कष्ट दूर नहीं किया तो इस संसार में मुझे कौन मानेगा। गणेश जी भगवान ने अपनी लीला से राजा के पुत्र को गायब कर दिया। फिर क्या था, सारी नगरी में हाहाकार मच गया। राजा के बेटे को गायब करने का सन्देह सास पर सभी को संदेह होने लगा। सास व्याकुल होकर विलाप करने लगी तब बहू ने सास से विनती की कहा – मांजी आप सभी का क्षण में संकट हरने वाले विध्न हरता गणेशजी का पूजन कीजिये, वे विध्नविनाशक हैं, आपका दुःख दूरगे वे अपने भक्तों पर सदैव ही अपनी कृपा बनाये रखते हैं।
सास के पास इस संकट से उबरने का और कोई रास्ता नहीं था परिवार जनों ने भी सास से दरी बना ली थी इस लिए सास ने बहूँ के साथ गणेश-पूजन किया। विध्न हर्ता गणपति ने प्रसन्न होकर राज के पुत्र को प्रकट किया। यह सब देख कर सासबहूँ से प्रसन्न रहने लगी तथा बहूँ के साथ भगवान गणेश की परम् भक्त बन गई। सारि नगरी में कहलवा दिया सब चौथ का व्रत करना विधि पूर्वक पूजन करना। इससे सभी मनोकामनाए पूर्ण होती हैं घर में अन्न , धन ,सुख सम्पति का वास होता हैं।

पंडित मोहनलाल द्विवेदी
हस्तरेखा, जन्म कुंडली एवं वास्तु विशेषज्ञ
गोल्ड मेडलिस्ट
(25 वर्षो का अनुभव)
मां शारदा देवी धाम मैहर म. प्र.
मो. 9424000090
7000081787

Share this Article

You cannot copy content of this page