कोरबा NOW HINDUSTAN कोरबा-दर्री सड़क मार्ग पर बने भवानी मंदिर के निकट धड़ल्ले से विद्युत संयंत्रों से निकली राखड़ को पाटकर बेखौफ बेजा कब्जा किया जा रहा हैं। जानकारी मिली हैं की इसमें जल संसाधन विभाग के अधिकारियो के अलावा सड़क निर्माण विभाग के अधिकारियो की भी साझेदारी सम्मिलित हैं। दुखद यह हैं की 20 से 25 फुट ऊचाई तक पाटी गयी राखड़ पुनः हसदेव नदी के जल प्रवाह के साथ पहुंचकर तलहटी में जम रही हैं। इससे नदी के जल स्रोत छिद्र भी बंद हो रहे हैं और नदी का जल प्रदूषित होकर शौच उपयोग के योग्य भी नहीं बच पा रहा हैं। इस घालमेल में कोरबा में पदस्थ प्रदूषण मंडल के अधिकारियो की अकर्मण्यता और रहस्यमय चुप्पी भी कटघरे में इन्हे खड़े करने के लिये पर्याप्त आपराधिक संलिप्तता का आधार बन चुकी हैं।
पहले भी जिले में पावर प्लांट की राख सरकारी जमीनों पर पाट कर सैकड़ो एकड़ जमीन भू-माफियाओं द्वारा हथिया ली गई है और कई जमीन राजस्व विभाग के करामाती अधिकारियों की जादुई कलम से मसाहती गांव की जमीन उड़ाकर कीमती सरकारी जमीनों के स्थान पर होल से लाकर बैठा दी गई हैं। जिसमे ग्राम झगराहा की जमीने सर्वाधिक चर्चाओं में हैं जहा पर बहुमंजिला इमारते अट्टालिकाएं बना दी गयी हैं।
यहां तक की हसदेव नदी के किनारे जल संसाधन विभाग की जमीन पर पूरी की पूरी बस्ती ही बसा दी गयी हैं, अब जो यदा-कदा कहीं भी सरकारी जमीन बची हुई है उस पर भी भू-माफिया उन्हें खोज-खोज कर कब्जा कर रहे हैं।
ताजा मामले में भवानी मंदिर से लगे हसदेव नदी के किनारे बायपास मार्ग पुल के पास एक बड़े जल संसाधन विभाग के भू-भाग पर पावर प्लांटों से निकली राख पाट कर भू-माफियाओ द्वारा कब्जा किया जा रहा है। बरसात के कारण जमीनो पर पाटी गई राख बहकर हसदेव नदी में जा रही है जिससे हसदेव नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है। वही इस नदी का पानी जिन खेतों में जा रहा है वहां के खेत भी बंजर हो रहे हैं। इसके साथ-साथ इस पानी से नहाने वाले लोगों को चर्म रोग जैसी गंभीर बीमारियां हो रही है, नदी के आस-पास जल संसाधन की जमीन को निजी जमीन बताते हुए कई भू-माफियाओं द्वारा पावर प्लांट की राख पाटकर बेजा कब्जा किया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि पुराने रिकॉर्ड में ये जमीने जल संसाधन विभाग के शासकीय राजस्व अभिलेखों में स्वामित्व के रूप में बाकायदा दर्ज हैं। लेकिन कुछ वर्षों में ही जमीनों का उलटफेर कर सरकारी जमीन को निजी बना दिया गया है। इस मामले को लेकर पर्यावरण विभाग, जल संसाधन विभाग, राजस्व विभाग सभी की मौन स्वीकृति नजर आ रही है जो कार्यवाही करने की बजाय संरक्षण देते नजर आ रहे हैं, क्या यही हैं नवा छत्तीसगढ़।