NOW HINDUSTAN महाशिवरात्रि पर बना है यह अद्भुत संयोग, शिव भक्तों पर होगी विशेष कृपा । महाशिवरात्रि का त्योहार इस बार एक साथ कई शुभ योग के बीच में मनाया जाएगा। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग समेत 4 शुभ एक साथ बन रहे हैं और इस दिन की पूजा बहुत ही शुभ फल प्रदान करने वाली मानी जा रही है। इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा करने से आपको सभी सुखों की प्राप्ति होती हैं। आपके जीवन से कष्ट और समस्याएं दूर होती हैं और शिव कृपा से सभी इच्छित कार्य पूर्ण होते हैं।
मां शारदा देवी धाम मैहर के प्रख्यात वास्तु एवं ज्योतिर्विद पंडित मोहनलाल द्विवेदी ने बताया कि महाशिवरात्रि पर कई शुभ योग एक साथ बने हैं। इसलिए इस साल यह त्योहार बहुत ही शुभ फल देने वाला माना जा रहा है। महाशिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल की महाशिवरात्रि सर्वार्थ सिद्धि योग जैसे कई बेहद शुभ योग के बीच में मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती की वैवाहिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। शिवपुराण में बताया गया है कि जो लोग विवाहित हैं उन्हें अपने जीवनसाथी के साथ इस दिन पूरे विधि विधान से शिवरात्रि की पूजा करनी चाहिए।
महाशिवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि योग
सर्वार्थ सिद्धि योग में महाशिवरात्रि जैसे महापर्व का होना शिवजी की विशेष कृपा देने वाला माना जा रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग में महाशिवरात्रि का व्रत करने और पूजा करने से आपको हर कार्य में मनचाही सफलता प्राप्त होगी और आपके काम बिना किसी बाधा के पूर्ण होंगे। आपके शिवजी की कृपा से सभी रुके कार्य पूर्ण होंगे और कारोबार में सफलता प्राप्त होगी। इसके अलावा खास बात यह है कि सर्वार्थ सिद्धि योग शुक्रवार को होने से इसका शुभ प्रभाव और भी बढ़ जाता है। इस साल शिवरात्रि आपके भौतिक सुखों में वृद्धि करने वाली मानी जा रही है।
महाशिवरात्रि पर शिव योग
महाशिवरात्रि पर शिव योग का संयोग भी बना है। शिव योग साधना, मंत्र, जप और तप के लिए बहुत ही अच्छा होता है। इस योग में महाशिवरात्रि का व्रत रखने से भगवान शिव तक आपकी प्रार्थना शीघ्र ही पहुंच जाती है। महाशिवरात्रि के दिन शुभ योग होने से आपकी साधना पूर्ण होती है और आपको भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है।
महाशिवरात्रि पर सिद्धि योग
महाशिवरात्रि पर निशीत काल की पूजा के वक्त सिद्धि योग होगा और इस काल में शिव साधना का संपूर्ण फल आपको प्राप्त होता है। इस योग में शिव पूजा के लिए किए जाने वाले सभी उपाय बहुत ही असरदार माने जाते हैं और भोले बाबा बहुत जल्द आपसे प्रसन्न होकर आपकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण करते हैं। आपके सुख में वृद्धि होती है और सभी कार्य सरलता से पूर्ण हो जाते हैं।
महाशिवरात्रि पर श्रवण नक्षत्र
महाशिवरात्रि पर श्रवण नक्षत्र के होने यह दिन और भी शुभफलदायी बन गया है। श्रवण नक्षत्र के स्वामी शनिदेव माने जाते हैं जो कि शिवजी के परम भक्त हैं। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन श्रवण नक्षत्र होने से यह व्रत और भी परमफलदायी हो गया है। श्रवण नक्षत्र में शिव पूजा करने से आपको शिवजी की कृपा का लाभ बहुत ही जल्द देखने को मिलता है।
महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव शादी के बंधन में बंधे थे। इसलिए इस दिन माता पार्वता और भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को सुख और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
महाशिवरात्रि की तारीख
पंचांग के अनुसार
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 8 मार्च को शाम में 08 बजकर 05 मिनट पर होगा और अगले दिन यानी 9 मार्च को शाम 05 बजकर 48 मिनट पर समाप्त होगी। हालांकि, भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व प्रदोष काल में होता है इसलिए 8 मार्च को ही महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा।
पंडित द्विवेदी ने बताया कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती की तपस्या सफल हुई थी। उनका विवाह भगवान शिव का साथ संपन्न हुआ था। महाशिवरात्रि का व्रत महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्त के लिए रखती हैं।
महाशिवरात्रि की पूजा विधि
महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे और भगवान शिव और माता पार्वती को प्रणाम करके पूजा का संकल्प लें। इसके बाद गंगा जल मिलाकर पानी से स्नान करें।
इसके बाद कोई नया वस्त्र पहने और फिर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
इसके बाद पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और माता पार्वती और भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करें।
इसके बाद कच्चे दूध या गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करें।
इसके बाद पंचोपचार कर विधि विधान से भगवान शिव और माता पार्वती का अभिषेक करें।
भगवान शिव को भांग धतूरा, फल, मदार के पत्ते बेल पत्र आदि अर्पित करें। साथ ही शिव चालीसा या शिव स्त्रोत का पाठ करें। साथ ही भगवान शिव के मंत्रों का जप करें।
अगले दिन सामान्य पूजा पाठ करके अपना व्रत खोलें।
शिवपुराण में वर्णित महाशिवरात्रि पूजा का महत्व
शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा पार्वती के पूछने पर भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। मोक्ष की प्राप्ति कराने वाले चार संकल्प पर नियमपूर्वक पालन करना चाहिए।
ये चार संकल्प हैं- शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा,
रुद्रमंत्र का जप,
शिवमंदिर में उपवास तथा
काशी में देहत्याग।
शिवपुराण में मोक्ष के चार सनातन मार्ग बताए गए हैं। इन चारों में भी शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है। अतः इसे अवश्य करना चाहिए।
यह सभी के लिए धर्म का उत्तम साधन है। निष्काम अथवा सकामभाव से सभी मनुष्यों, वर्णों, स्त्रियों, बालकों तथा देवताओं के लिए यह महान व्रत परम हितकारक माना गया है। प्रत्येक मास के शिवरात्रि व्रत में भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में होने वाले महाशिवरात्रि व्रत का शिवपुराण में विशेष महात्म्य है।
उपवास में रात्रि जागरण अवश्य करे
ऋषि मुनियों ने समस्त आध्यात्मिक अनुष्ठानों में उपवास को महत्वपूर्ण माना है। ‘विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देनिहः’ के अनुसार उपवास विषय निवृत्ति का अचूक साधन है। अतः आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना परमावश्यक है। उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर संतों का यह कथन अत्यंत प्रसिद्ध है-‘या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।’
इसका सीधा तात्पर्य यही है कि उपासना से इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण करने वाला संयमी व्यक्ति ही रात्रि में जागकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो सकता है। अतः शिवोपासना के लिए उपवास एवं रात्रि जागरण उपयुक्त हो सकता है? रात्रि प्रिय शिव से भेंट करने का समय रात्रि के अलावा और कौन समय हो सकता है?
इन्हीं सब कारणों से इस महान व्रत में व्रतीजन उपवास के साथ रात्रि में जागकर शिव पूजा करते हैं। इसलिए महाशिवरात्रि को रात के चारों पहरों में विशेष पूजा की जाती है। सुबह आरती के बाद यह उपासना पूर्ण होती है।
महाशिवरात्रि पूजा विधि : –
पंडित द्विवेदी ने बताया कि शिवपुराण के अनुसार व्रती पुरुष को प्रातः काल उठकर स्नान संध्या कर्म से निवृत्त होने पर मस्तक पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्षमाला धारण कर शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं शिव को नमस्कार करना चाहिए। तत्पश्चात उसे श्रद्धापूर्वक व्रत का इस प्रकार संकल्प करना चाहिए-
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम।
निर्विघ्नमस्तु से चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।
यह कहकर हाथ में लिए पुष्पाक्षत् जल आदि को छोड़ने के पश्चात यह श्लोक पढ़ना चाहिए-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तु से
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाशः शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि॥
हे देवदेव! हे महादेव! हे नीलकण्ठ! आपको नमस्कार है। हे देव! मैं आपका शिवरात्रि व्रत करना चाहता हूं। हे देवश्वर! आपकी कृपा से यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण् हो और काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रु मुझे पीड़ित न करें।
रात्रि पूजा का विधान :-
दिनभर अधिकारानुसार शिवमंत्र का यथाशक्ति जप करना चाहिए अर्थात् जो द्विज हैं और जिनका विधिवत यज्ञापवीत संस्कार हुआ है तथा नियमपूर्वक यज्ञोपवीत धारण करते हैं। उन्हें ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करना चाहिए परंतु जो द्विजेतर अनुपनीत एवं स्त्रियां हैं, उन्हें प्रणवरहित केवल शिवाय नमः मंत्र का ही जप करना चाहिए।
रुग्ण, अशक्त और वृद्धजन दिन में फलाहार ग्रहण कर रात्रि पूजा कर सकते हैं, वैसे यथाशक्ति बिना फलाहार ग्रहण किए रात्रिपूजा करना उत्तम है।
रात्रि के चारों प्रहरों की पूजा का विधान
सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर जाकर अथवा घर पर ही सुविधानुसार पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर और तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का इस प्रकार संकल्प करे-देशकाल का संकीर्तन करने के अनंतर बोले- ‘ममाखिलपापक्षयपूर्वकसकलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थ च शिवपूजनमहं करिष्ये।’ अच्छा तो यह है कि किसी वैदिक विद्वान ब्राह्मण के निर्देश में वैदिक मंत्रों से रुद्राभिषेक का अनुष्ठान करवाएं।